Dhadak 2 Movie Review in Hindi : आज भी भारत में जब आप किसी से मिलते हैं और अपना नाम बताते हैं, तो अगला सवाल अक्सर होता है—“सरनेम क्या है?” क्योंकि इसी से लोग ये तय करते हैं कि आप कौन हैं, कहां से हैं और आपके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। फिल्म ‘धड़क 2’ इसी सोच पर एक मजबूत प्रहार करती है।
कहानी की शुरुआत – डर नाम का सरनेम
फिल्म का हीरो नीलेश (सिद्धांत चतुर्वेदी) लॉ कॉलेज में पढ़ता है, लेकिन अपने पूरे नाम को खुलकर बताने से बचता है। उसे डर है कि जैसे ही वह “अहिरवार” बताएगा, लोग उसे ‘नीची जाति’ से जोड़ देंगे और उनकी नजरें बदल जाएंगी। वह अपना मोहल्ला भी छुपाता है क्योंकि वह इलाका दलितों का है।
वहीं, नायिका विधि (तृप्ति डिमरी) एक ब्राह्मण परिवार से है, लेकिन सोच में बहुत आगे है। वह इंसान को उसकी जाति से नहीं, उसकी इंसानियत से परखती है।
जात-पात नहीं जाती
फिल्म साफ दिखाती है कि जातिवाद केवल अलग-अलग जातियों के बीच नहीं, बल्कि एक ही जाति के अंदर भी मौजूद है। जैसे एक ब्राह्मण परिवार मांसाहारी होता है, तो दूसरा उसे नज़रअंदाज करता है। सवाल उठता है—क्या खाने की आदत से किसी की जाति तय होती है?
फिल्म के कुछ डायलॉग सीधे दिल पर चोट करते हैं, जैसे:

“70 साल से आरक्षण मिला है, लेकिन भेदभाव तो सदियों से होता आया है।”
तमिल फिल्म ‘परियेरुम पेरुमल’ से प्रेरणा
‘धड़क 2’ की कहानी तमिल फिल्म ‘Pariyerum Perumal’ से प्रेरित है, जो जातिवाद, लैंगिक भेदभाव और सामाजिक असमानता जैसे गंभीर मुद्दों को सामने लाती है। फिल्म में एक दलित छात्र की फेलोशिप सिर्फ इसलिए रद्द कर दी जाती है क्योंकि वह अन्याय के खिलाफ आवाज उठाता है — यह सीधे रोहित वेमुला केस की याद दिलाता है।
मोहब्बत के बीच मोबाइल और जींस की दीवारें
विधि का परिवार भी उसी पुरानी सोच में फंसा है, जहां लड़कियों का जींस पहनना, मोबाइल चलाना या खुले विचार रखना गलत समझा जाता है। दूसरी तरफ, नीलेश का पिता एक लोक कलाकार है जो महिला वेशभूषा में नृत्य करता है, और इसलिए समाज में उसका मजाक उड़ता है।
फिल्म की ताकत और कमजोरी
शाजिया इकबाल का निर्देशन काबिले तारीफ है। उन्होंने माहौल को बेहद यथार्थपूर्ण दिखाया है। सिद्धांत चतुर्वेदी ने अब तक का सबसे अच्छा अभिनय किया है। उन्होंने नीलेश के अंदर के दर्द, गुस्सा और असुरक्षा को बहुत खूबसूरती से पेश किया है। तृप्ति डिमरी भी अपने किरदार में पूरी तरह से फिट बैठती हैं।
सौरभ सचदेवा कम डायलॉग्स में भी डर पैदा करते हैं। विपिन शर्मा और जाकिर हुसैन जैसे अनुभवी कलाकार भी कहानी में जान डालते हैं।
❌ लेकिन…
फिल्म कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाती है, लेकिन कई बार उसकी पकड़ कमजोर पड़ जाती है। कुछ सीन ऐसे हैं जहां तीव्र चोट की उम्मीद होती है, लेकिन कहानी वहां पहुंच नहीं पाती। नीलेश और विधि की लव स्टोरी भी थोड़ी कमजोर लगती है, उनका प्यार अचानक और कमजोर सा लगता है।
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फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और एडिटिंग बेहतरीन हैं। कैमरा वर्क और लोकेशन बहुत यथार्थ लगते हैं। लेकिन संगीत थोड़ा कमजोर पड़ता है। गाने कहानी को मजबूती नहीं देते।
कुल मिलाकर
‘धड़क 2’ एक जरूरी फिल्म है। यह उन बातों को सामने लाती है, जिन पर अक्सर हम चुप रहते हैं — जातिवाद, भेदभाव और पहचान की लड़ाई। यह फिल्म सोचने पर मजबूर करती है कि आज भी हमारे समाज में बदलाव सिर्फ कपड़ों और मोबाइल तक सीमित है, सोच अब भी पुरानी है।
अगर फिल्म और थोड़ी साहस दिखाती, और दर्द को थोड़ी और गहराई से दिखाती, तो यह एक यादगार फिल्म बन सकती थी।
फिल्म से जुड़ी जानकारी:
- निर्देशक: शाजिया इकबाल
- कलाकार: सिद्धांत चतुर्वेदी, तृप्ति डिमरी, सौरभ सचदेवा, जाकिर हुसैन, विपिन शर्मा
- संगीत: जावेद-मोहसिन, रोचक कोहली, श्रेयस पुराणिक
- समय: 2 घंटे 26 मिनट
- सर्टिफिकेट: UA (16+ उम्र के लिए)
- रेटिंग: ★★★☆☆ (3/5)
क्या देखनी चाहिए?
हां, अगर आप समाज की सच्चाई से आंखें नहीं चुराते और चाहते हैं कि सिनेमा बदलाव लाए — तो ‘धड़क 2’ एक जरूरी फिल्म है। कहानी में कमियां हैं, लेकिन मुद्दा बड़ा और जरूरी है।